श्री गोविंद सखा चरित्र: दिव्य सखा भाव | About Shri Govind Sakha : The Divine Sentiment of Friendship [Satsang: 27 Aug, 2025]

Thumbnail
श्री भगवत चर्चा
27-08-2025

श्री गोविंद सखा चरित्र

भगवान के सखा गोविंद दास जी की अद्भुत लीलाएँ और संगीत साधना

Sri Sri 108 Sri Vinod Baba ji Maharaj
पूरा सत्संग देखें
पढ़ने का तरीका चुनें (Short / Detail):
संक्षेपविस्तार
हमारे प्रिय सद्गुरुदेव बताते हैं:
यदि आपके अंदर सच्चा प्रेम है, तो आप स्वयं अनुभव कर सकते हैं कि भगवान अभी भी अपने भक्तों के साथ वैसी ही लीलाएं करते हैं। इसके लिए केवल भाव, प्रेम और परम आत्मीयता की आवश्यकता है।
📜

कथा की महिमा

01:03
भक्त कथा श्रवण करने से अंतःकरण की मलिनता शीघ्र दूर होती है। यह हृदय को स्वच्छ बनाकर भक्ति मार्ग को सहज बनाती है।भक्त कथा और सत्संग में अद्भुत शक्ति है। इसे नित्य श्रवण करने से अंतःकरण में स्थित मलिनता बहुत शीघ्र दूर हो जाती है और हृदय स्वच्छ हो जाता है। अन्य साधनों की अपेक्षा, कथा श्रवण से भक्ति रस का आस्वादन करना और भक्ति मार्ग में आगे बढ़ना अत्यंत सहज और मंगलकारी होता है।
🎭

नित्य लीला vs भौम लीला

03:07
भगवान की भौम लीला में मनुष्यों जैसा भाव (क्रोध, भूख) दिखता है। यह लीला अप्राकृत है पर प्राकृत जैसी लगती है।नित्य धाम की लीला चिन्मय और अपरिवर्तनीय है, लेकिन भौम जगत में भगवान मनुष्यवत लीला करते हैं। इसमें मान-अभिमान, क्रोध और भूख-प्यास जैसे प्राकृत गुण दिखाई देते हैं, जो वास्तव में योगमाया द्वारा रचित दिव्य लीला है। साधारण मनुष्य इसे देखकर भ्रमित हो सकता है, परंतु यह भक्तों के आनंद वर्धन के लिए है।
🙈

दृष्टांत: आँख-मिचौली

11:27
भगवान खेल में 'मुग्धता' स्वीकार करते हैं। यदि आँख-मिचौली में वे सर्वज्ञ बने रहें, तो खेल का आनंद ही समाप्त हो जाएगा।जैसे आँख-मिचौली के खेल में भगवान आँख पर पट्टी बांधते हैं, तो वे अपनी सर्वज्ञता को ढक लेते हैं। यदि वे सब जानते हुए सखियों को तुरंत पकड़ लें, तो खेल का रस (आनंद) ही नहीं बचेगा। लीला रस के आस्वादन के लिए भगवान जानबूझकर 'मुग्धता' (अज्ञान/भोलापन) स्वीकार करते हैं, अन्यथा प्रेम लीला संभव नहीं है।
🎵

गोविंद दास और संगीत

18:49
गोविंद दास जी का संगीत अलौकिक था। तानसेन और अकबर भी छुपकर उनका गायन सुनने आए और मंत्रमुग्ध हो गए।गोविंद दास जी (गोविंद स्वामी) अष्ट सखाओं में से थे, जिनका संगीत दिव्य था। उनकी ख्याति सुनकर तानसेन भी अकबर के साथ वेश बदलकर उनका भजन सुनने आए। उनका गायन सुनकर हिरण तक सुध-बुध खो बैठे। जब गोविंद दास को पता चला कि अकबर ने सुना है, तो उन्होंने वह राग गाना ही छोड़ दिया क्योंकि वे केवल ठाकुरजी के लिए गाते थे।
🤝

श्रीनाथ जी से सखा भाव

34:14
गोविंद दास श्रीनाथ जी के साथ कंकड़ फेंकने और डंडा-गुल्ली जैसे खेल खेलते थे। यह सखा भाव की परम आत्मीयता है।गोविंद दास जी श्रीनाथ जी (गोवर्धन) के साथ साक्षात खेलते थे। कभी एक-दूसरे को कंकड़ मारना, तो कभी डंडा-गुल्ली खेलते हुए मंदिर में भाग जाना। जब वे खेल में हार जाते या झगड़ते, तो भगवान से भी वैसे ही लड़ते जैसे एक मित्र दूसरे मित्र से लड़ता है। यह सखा भाव की मर्यादा-रहित परम प्रेममयी अवस्था है।
🐎

भंगी और भगवान

46:43
ठाकुरजी ने एक भंगी बालक से मित्रता की और घोड़ा बनकर उसे कंधे पर उठाया। गोविंद दास ने उन्हें स्नान करने को कहा।श्रीनाथ जी ने मंदिर के पास रहने वाले एक भंगी के लड़के से दोस्ती कर ली और खेल में हारने पर उसे अपने कंधे पर चढ़ाया (घोड़ा बने)। यह देखकर गोविंद दास ने मजाक में कहा कि अब मंदिर अपवित्र हो जाएगा, स्नान करो। तब कुंड में धक्का-मुक्की हुई और ठाकुरजी गीले कपड़ों में ही मंदिर भाग गए। यह भगवान की भक्त-वत्सलता है।

जिज्ञासा (Q&A)

प्रश्न: भगवान मनुष्यों जैसा व्यवहार (क्रोध, ईर्ष्या, भूख) क्यों करते हैं?03:49
उत्तर: यह भगवान की 'भौम लीला' है। भक्तों को आनंद देने के लिए वे अपनी सर्वज्ञता को योगमाया से ढक लेते हैं और मुग्धता (भोलापन) स्वीकार करते हैं।उत्तर: नित्य गोलोक धाम में भगवान का स्वरूप दिव्य और अपरिवर्तनीय है। लेकिन जब वे पृथ्वी पर (भौम लीला में) आते हैं, तो वे जानबूझकर मनुष्यों जैसे गुण (क्रोध, भूख, बाल-सुलभ चपलता) दिखाते हैं। वे योगमाया के द्वारा अपनी सर्वज्ञता को ढक लेते हैं ताकि वे अपने भक्तों (जैसे सखाओं) के साथ वास्तविक प्रेम संबंधों का आस्वादन कर सकें।
करें (Do's)
  • भक्त-कथाओं का नित्य श्रवण करें, इससे हृदय शीघ्र शुद्ध होता है।
  • भगवान को अपना परम आत्मीय मित्र मानें और निस्संकोच भाव रखें।
  • भगवान की लीलाओं को दिव्य (अप्राकृत) समझें, भले ही वे मनुष्य जैसी दिखें।
न करें (Don'ts)
  • भगवान के मनुष्यवत् व्यवहार को देखकर उन्हें साधारण मनुष्य समझने की भूल न करें।
  • भक्ति या कीर्तन केवल प्रतिष्ठा (मान-सम्मान) पाने के लिए न करें।
  • भगवान की बाल-लीलाओं में तर्क-वितर्क या शंका न करें।

शास्त्र प्रमाण (Scriptural References)

इस खंड में वे श्लोक व कथा-प्रसंग सम्मिलित हैं जो सद्गुरुदेव द्वारा उच्चारित (Recited) किए गए हैं या सत्संग के भाव को समझने में सहायक संदर्भ के रूप में दिए गए हैं।
Bhagavad Gita 7.25सद्गुरुदेव द्वारा उच्चारित (Recited)
जब भगवान पृथ्वी पर लीला करते हैं, तो वे साधारण मनुष्यों को पहचान में नहीं आते क्योंकि वे अपनी योगमाया से ढके रहते हैं।
नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः ।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥
nāhaṁ prakāśaḥ sarvasya yoga-māyā-samāvṛtaḥ
mūḍho ’yaṁ nābhijānāti loko mām ajam avyayam
मैं अपनी योगमाया शक्ति द्वारा आवृत (ढका) रहने के कारण सबके लिए प्रकट नहीं हूँ। यह मोहित (मूढ़) जगत मुझ अजन्मा और अविनाशी को नहीं जानता।
Srimad Bhagavatam 10.14.32पूरक संदर्भ (Supplementary)
गोविंद दास जैसे सखाओं का भाग्य अत्यंत दुर्लभ है। स्वयं ब्रह्मा जी ने व्रजवासियों के इस सखा-भाव के भाग्य की सराहना की है।
अहो भाग्यमहो भाग्यं नन्दगोपव्रजौकसाम् ।
यन्मित्रं परमानन्दं पूर्णं ब्रह्म सनातनम् ॥
aho bhāgyam aho bhāgyaṁ nanda-gopa-vrajaukasām
yan-mitraṁ paramānandaṁ pūrṇaṁ brahma sanātanam
नंद बाबा, ग्वालबालों और व्रजवासियों का अहोभाग्य है! अहोभाग्य है! क्योंकि परमानंद स्वरूप, सनातन पूर्ण ब्रह्म स्वयं उनके मित्र बनकर (सखा रूप में) रह रहे हैं।
Srimad Bhagavatam 10.12.11पूरक संदर्भ (Supplementary)
सखा भाव की महिमा और भगवान के साथ खेलने वाले ग्वाल-बालों के भाग्य का वर्णन।
इत्थं सतां ब्रह्मसुखानुभूत्या दास्यं गतानां परदैवतेन ।
मायाश्रितानां नरदारकेण साकं विजह्रुः कृतपुण्यपुञ्जाः ॥
Itthaṁ satāṁ brahma-sukhānubhūtyā dāsyaṁ gatānāṁ para-daivatena
māyā-śritānāṁ nara-dārakeṇa sākaṁ vijahruḥ kṛta-puṇya-puñjāḥ
जो ज्ञानियों के लिए ब्रह्म-सुख हैं, दासों के लिए परम देवता हैं, और माया-मोहितों के लिए साधारण बालक हैं, उन्हीं भगवान के साथ ये महा-पुण्यशाली ग्वालबाल खेल रहे हैं।
Srimad Bhagavatam 1.2.17पूरक संदर्भ (Supplementary)
कथामृत द्वारा अंतःकरण शुद्धि की बात को पुष्ट करने हेतु प्रमाण।
शृण्वतां स्वकथाः कृष्णः पुण्यश्रवणकीर्तनः ।
हृद्यन्तः स्थो ह्यभद्राणि विधुनोति सुहृत्सताम् ॥
Śṛṇvatāṁ sva-kathāḥ kṛṣṇaḥ puṇya-śravaṇa-kīrtanaḥ
hṛdy antaḥ stho hy abhadrāṇi vidhunoti suhṛt satām
भगवान श्रीकृष्ण की कथा सुनना और कीर्तन करना दोनों ही पुण्यजनक हैं। वे सबके हृदय में विराजमान हैं और जो उनकी कथा सुनते हैं, उन सत्यवादी भक्तों के हृदय से वे अशुभ वासनाओं को नष्ट कर देते हैं।
स्पष्टीकरण (Clarification)

यह सारांश AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) का उपयोग गुरु सेवा में करके तैयार किया गया है। इसमें त्रुटि हो सकती है। कृपया पूर्ण लाभ के लिए पूरा वीडियो अवश्य देखें।

Comments

Select Language

Home
Widgets
Top
Lang