मैं शरीर नहीं हूँ (I am not the body) [Satsang : Dec 14, 2025]

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श्री भगवत चर्चा
14 दिसंबर, 2025

जीव, अहंकार और अर्जुन का मोह

जीव तत्व: अर्जुन का अहंकार और द्वारका लीला

श्री श्री 108 श्री विनोद बाबाजी महाराज
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संक्षेप विस्तार

🦢 संसार और 'अंधेरे का मित्र' देखें ▶

संसार स्वप्नवत है। जैसे अँधेरे में मित्र को गले लगाने पर आनंद आता है, पर पता चलने पर कि वह दूसरा है, आनंद गायब हो जाता है। यह सब 'आरोप' है।

महाराज जी 'अंधेरे में मित्र' का दृष्टान्त देते हैं: हम किसी को अपना मित्र समझकर गले मिलते हैं और सुख पाते हैं, पर रोशनी होते ही पता चलता है वह अजनबी है और सुख गायब हो जाता है। इसी प्रकार हम नश्वर संसार में सुख का 'आरोप' (Imposition) करते हैं, जो वास्तविक नहीं है।

⚔️ अहंकार और कर्तापन का भ्रम देखें ▶

जड़ अहंकार 'मैं शरीर हूँ, यह मेरा है' का भाव देता है, जिससे जीव कर्मों का फल भोगता है। यह संसार चक्र का मूल कारण है।

जड़ अहंकार के कारण जीव मानता है कि 'मैं कर्ता हूँ' (गीता 3.27)। अहंकार के दो रूप हैं: **जड़ अहंकार** (देहाभिमान), जो बंधन देता है, और **चिद् अहंकार** (स्वरूप-अभिमान), जो मोक्ष की ओर ले जाता है। साधन करते समय भी सूक्ष्म रूप में यह अहंकार छिपा रहता है।

❓ चोट लगने पर दर्द किसे होता है? देखें ▶

दर्द न शरीर को होता है (वह जड़ है), न आत्मा को। यह दर्द 'अहंकार' को होता है।

शरीर जड़ है, उसे दर्द महसूस नहीं हो सकता। आत्मा चेतन है, उसे चोट नहीं लगती। यह 'अहंकार' (Ego) है जो शरीर और आत्मा के बीच ग्रंथि है। जब हम शरीर को 'मैं' मानते हैं, तो शरीर का कष्ट हमें अपना कष्ट प्रतीत होता है।

गुरुदेव की वाणी
"मैं शरीर नहीं, शरीर सम्बन्धी वस्तु मेरी नहीं। मैं चिद् वस्तु हूँ। मैं राधा रानी की हूँ, राधा रानी मेरी हैं।"
🪔 चिद् अहंकार (Spiritual Ego)
भाव: 'मैं भगवान का दास हूँ।'
परिणाम: नित्य सेवा और आनंद।
VS
🧱 जड़ अहंकार (Material Ego)
भाव: 'मैं कर्ता हूँ, यह मेरा है।'
परिणाम: 84 लाख योनियों में भ्रमण।
✨ सार-संक्षेप (Summary)
  • संसार का स्वरूप: यहाँ सुख-दुःख केवल मन की कल्पना (आरोप) है, जैसे स्वप्न में शेर का डर।
  • कर्तापन का भ्रम: कार्य प्रकृति के गुणों द्वारा होते हैं (Gita 3.27), लेकिन अहंकार के कारण जीव मानता है 'मैं कर रहा हूँ'।
  • सूक्ष्म अहंकार: अर्जुन जैसे महापुरुष को भी अपनी वीरता का गर्व हुआ, जिसे भगवान ने द्वारका लीला द्वारा दूर किया।
✅ क्या करें (Do's)
  • स्वयं को 'चिद्-वस्तु' (आत्मा) मानें और भगवान से सम्बन्ध जोड़ें।
  • सुख-दुःख को शरीर का धर्म मानकर सहन करें (तितिक्षा)।
❌ क्या न करें (Don'ts)
  • शरीर में 'मैं' और संसार में 'मेरा' (Mamata) का भाव न रखें।
  • अपनी साधना, तपस्या या शक्ति का घमंड न करें।
📜 शास्त्र प्रमाण (Scriptural References)
इस खंड में वे श्लोक व कथा-प्रसंग सम्मिलित हैं जो सद्गुरुदेव द्वारा उच्चारित किए गए हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता (3.27) सद्गुरुदेव द्वारा उच्चारित
अहंकार के कारण ही जीव स्वयं को कर्ता मानता है:
प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः ।
अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ॥
prakṛteḥ kriyamāṇāni guṇaiḥ karmāṇi sarvaśaḥ |
ahaṅkāra-vimūḍhātmā kartāham iti manyate ||
सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते हैं, परन्तु अहंकार से मोहित अन्तःकरण वाला अज्ञानी मनुष्य मानता है कि 'मैं कर्ता हूँ'।
श्रीरामचरितमानस (7.117.2) सद्गुरुदेव द्वारा उच्चारित
जीव का वास्तविक स्वरूप क्या है?
ईश्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥
īśvara aṃsa jīva abināsī। cetana amala sahaja sukha rāsī॥
जीव ईश्वर का अंश है। वह अविनाशी, चेतन, निर्मल और स्वभाव से ही सुख की राशि (आनंदमय) है।
श्रीमद्भागवत पुराण (10.89) कथा प्रसंग
अर्जुन को अपने गाण्डीव पर अभिमान हुआ, जिसे भगवान ने स्वयं दूर किया:
प्रसंग: द्वारका में ब्राह्मण-पुत्रों की रक्षा

द्वारका में एक ब्राह्मण के लगातार पुत्र जन्म लेते ही मर जाते थे। ब्राह्मण ने इसके लिए कृष्ण को दोष दिया। तब अर्जुन ने क्रोधावेश में आकर अपनी वीरता पर भरोसा करते हुए प्रतिज्ञा ली कि वह उन पुत्रों की रक्षा करेंगे। जब वे अपनी पूरी शक्ति लगाकर भी असफल हुए, तो कृष्ण उन्हें अपने साथ लेकर भगवान (महाविष्णु) के धाम गए और उन्हें पुत्र दिखाए। इस लीला के माध्यम से भगवान ने अर्जुन का सूक्ष्म अहंकार तोड़ा।
⚠️ स्पष्टीकरण: यह सारांश AI द्वारा गुरु सेवा में तैयार किया गया है।

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