कथामृत: सर्वश्रेष्ठ दान | Kathamrit: The Highest Form of Charity [Satsang : Dec 9, 2025]

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श्री भगवत चर्चा
09 Dec 2025

कथामृत: सर्वश्रेष्ठ दान और जीवन का परम लाभ

कथामृत की महिमा: सात्विक दान, श्रवण विधि और सत्संग का प्रभाव

Sri Sri 108 Sri Vinod Baba ji Maharaj
पूरा सत्संग देखें
संक्षेप विस्तार
हमारे प्रिय सद्गुरुदेव बताते हैं:
तुम्हें कोई कष्ट-साध्य तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है। बस श्रद्धा के साथ चुपचाप बैठकर हरि कथा का श्रवण करो। यह कथामृत कानों के माध्यम से प्रवेश कर तुम्हारे अंतकरण को स्वयं शुद्ध और प्रेमानंद से भर देगा।
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कथामृत: स्वर्ग से श्रेष्ठ

00:53 ▶
स्वर्ग का अमृत नश्वर है, पर हरि कथा का अमृत (कथामृत) भगवान को भी प्रिय है। स्वर्ग का अमृत पीने से पुण्य क्षीण होने पर पतन होता है, लेकिन कथा-सुधा स्वयं भगवान और प्राणेश्वरी राधा रानी भी पान करते हैं। यह अमृत जीव को संसार चक्र से सदा के लिए मुक्त कर देता है।
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श्रवण की विधि

02:32 ▶
कथामृत मुख से नहीं, कानों से पिया जाता है। यह सीधे हृदय में जाकर विकार मिटाता है। कथामृत पान करने के लिए केवल कानों (श्रवण इंद्रिय) का उपयोग करें। यह अमृत कानों से प्रवेश कर अंतकरण को वैसे ही शुद्ध कर देता है जैसे औषधि रोग को, बिना किसी अतिरिक्त चेष्टा के।
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कथा-दान: सर्वश्रेष्ठ दान

04:02 ▶
अन्न, वस्त्र या धन दान से बढ़कर 'हरि-कथा' का दान है क्योंकि यह जन्म-मृत्यु मिटाता है। अन्य सभी दान (भूमि, अन्न, वस्त्र) केवल क्षणिक सुख देते हैं और कभी-कभी पाप का कारण भी बनते हैं (जैसे शराबी को धन देना)। परंतु हरि-कथा का दान जीव को सदा के लिए दुखों से तार देता है, इसलिए इसे 'भूरिदा' (महा-दान) कहा गया है।

❓ जिज्ञासा (Q&A)

प्रश्न: सात्विक दान किसे कहते हैं? 05:14 ▶
उत्तर: जो दान देश, काल और पात्र देखकर बिना बदले की आशा के दिया जाए। उत्तर: गीता अनुसार, 'दातव्यम्' (देना कर्तव्य है) - इस भाव से, अनुपकारी (जो बदला न दे सके) व्यक्ति को, सही देश और काल में जो दान दिया जाता है, वही सात्विक दान है।
प्रश्न: राजसिक और तामसिक दान में क्या दोष है? 07:48 ▶
उत्तर: राजसिक दान फल की आशा या कष्ट से दिया जाता है। तामसिक दान अपमानपूर्वक कुपात्र को दिया जाता है। उत्तर: यदि दान देकर मन में कष्ट हो या भविष्य में लाभ की आशा हो, तो वह राजसिक है। यदि बिना सत्कार के, अवज्ञापूर्वक (अपमान से) किसी अपात्र को दान दिया जाए, तो वह तामसिक है जिसका कोई सुफल नहीं होता।
प्रश्न: वास्तविक सत्संग और मनोरंजक कथा में क्या अंतर है? 15:46 ▶
उत्तर: मनोरंजक कथा केवल कान सुख देती है, जबकि सच्चा सत्संग हृदय परिवर्तित करता है। उत्तर: शहरों में होने वाली 'प्रोफेशनल' कथाएं अक्सर संगीत और मनोरंजन प्रधान होती हैं, जिससे केवल "वाह-वाह" निकलती है। सच्चा सत्संग वह है जिसे सुनकर हृदय में वैराग्य जागे, आँखों में आंसू आएं और जीवन का लक्ष्य "हरि-प्राप्ति" बन जाए।

📜 शास्त्र प्रमाण (Scriptural References)

इस खंड में वे श्लोक व कथा-प्रसंग सम्मिलित हैं जो सद्गुरुदेव द्वारा उच्चारित (Recited) किए गए हैं या सत्संग के भाव को समझने में सहायक संदर्भ के रूप में दिए गए हैं।
Srimad Bhagavatam 10.31.9 (Gopi Geet) सद्गुरुदेव द्वारा उच्चारित (Recited)
सद्गुरुदेव ने कथा को 'भूरिदा' (सबसे बड़ा दान) बताते हुए गोपियों के इस श्लोक का गान किया।
तव कथामृतं तप्तजीवनं कविभिरीडितं कल्मषापहम् । श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं भुवि गृणन्ति ये भूरिदा जनाः ॥
Tava kathāmṛtaṁ tapta-jīvanaṁ kavibhir īḍitaṁ kalmaṣāpaham | śravaṇa-maṅgalaṁ śrīmad ātataṁ bhuvi gṛṇanti ye bhūri-dā janāḥ ||
हे प्रभु! आपकी कथा अमृत स्वरूप है, जो विरह-तापित जीवों को जीवन दान देने वाली है। ज्ञानी महापुरुषों द्वारा इसका गान किया जाता है और यह सारे पाप-ताप को हरने वाली है। जो लोग इस कथा का गान/दान करते हैं, वे ही भूतल पर सबसे बड़े दानी हैं।
Bhagavad Gita 17.20 सद्गुरुदेव द्वारा उच्चारित (Recited)
सात्विक दान की परिभाषा समझाते हुए बाबा ने यह श्लोक उद्धृत किया।
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे । देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम् ॥
Dātavyam iti yad dānaṁ dīyate ’nupakāriṇe deśe kāle ca pātre ca tad dānaṁ sāttvikaṁ smṛtam
दान देना कर्तव्य है—ऐसा मानकर, जो दान देश, काल और पात्र को देखकर ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जिससे प्रत्युपकार (बदले) की आशा नहीं होती, वह दान सात्त्विक कहा गया है।
Bhagavad Gita 17.21 सद्गुरुदेव द्वारा उच्चारित (Recited)
राजसिक दान के लक्षणों (कष्ट और फल की आशा) का वर्णन करते हुए।
यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः । दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम् ॥
Yat tu pratyupakārārthaṁ phalam uddiśya vā punaḥ dīyate ca parikliṣṭaṁ tad dānaṁ rājasaṁ smṛtam
किंतु जो दान बदले में उपकार की भावना से या फल की दृष्टि से (स्वर्ग आदि की चाह में) और कष्टपूर्वक (दुखी मन से) दिया जाता है, वह दान राजस कहा गया है।
Bhagavad Gita 17.22 सद्गुरुदेव द्वारा उच्चारित (Recited)
तामसिक दान (बिना आदर के) के विषय में चेतावनी देते हुए।
अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते । असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम् ॥
Adeśa-kāle yad dānam apātrebhyaś ca dīyate asat-kṛtam avajñātaṁ tat tāmasam udāhṛtam
जो दान बिना सत्कार के और तिरस्कारपूर्वक अयोग्य देश-काल में कुपात्रों को दिया जाता है, वह तामस कहा गया है।
Srimad Bhagavatam 3.25.25 पूरक संदर्भ (Supplementary)
साधु-संग और महत-कृपा के प्रभाव को पुष्ट करने के लिए शास्त्र प्रमाण (क्योंकि बाबा ने महत संग की चर्चा की)।
सतां प्रसङ्गान्मम वीर्यसंविदो भवन्ति हृत्कर्णरसायनाः कथाः । तज्जोषणादाश्वपवर्गवर्त्मनि श्रद्धा रतिर्भक्तिरनुक्रमिष्यति ॥
Satāṁ prasaṅgān mama vīrya-saṁvido bhavanti hṛt-karṇa-rasāyanāḥ kathāḥ taj-joṣaṇād āśv apavarga-vartmani śraddhā ratir bhaktir anukramiṣyati
शुद्ध भक्तों के संग से मेरी शक्ति और लीलाओं की चर्चा कानों और हृदय को रसायन (अमृत) के समान प्रिय लगती है। ऐसी कथाओं के सेवन से मोक्ष के मार्ग (भक्ति) में शीघ्र ही श्रद्धा, रति और फिर प्रेम-भक्ति का उदय होता है।
⚠️स्पष्टीकरण (Clarification)

यह सारांश AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) का उपयोग गुरु सेवा में करके तैयार किया गया है। इसमें त्रुटि हो सकती है। कृपया पूर्ण लाभ के लिए पूरा वीडियो अवश्य देखें।

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